सुचना: प्रिय मैथिल बंधूगन, किछ मैथिल बंधू द्वारा सोसिअल नेटवर्क (फेसबुक) पर एक चर्चा उठाओल गेल " यो मैथिल बंधूगन कहिया ई दहेजक महा जालसँ मिथिला मुक्त हेत ?" जकरा मैथिल बंधुगणक बहुत प्रतिसाद मिलल! तहीं सँ प्रेरीत भs कs आय इ जालवृतक निर्माण कएल गेल अछि! सभ मैथिल बंधू सँ अनुरोध अछि, जे इ जालवृत में जोर - शोर सँ भागली, आ सभ मिल सपथ ली जे बिना इ प्रथा के भगेना हम सभ दम नै लेब! जय मैथिली, जय मिथिला,जय मिथिलांचल!
नोट: यो मैथिल बंधुगन आओ सभ मिल एहि मंच पर चर्चा करी जे इ महाजाल सँ मिथिला कोना मुक्त हेत! जागु मैथिल जागु.. अपन विचार - विमर्श एहि जालवृत पर प्रकट करू! संगे हम सभ मैथिल नवयुवक आ नवयुवती सँ अनुरोध करब, जे अहि सबहक प्रयास एहि आन्दोलन के सफलता प्रदान करत! ताहीं लेल अपने सभ सबसँ आगा आओ आ अपन - अपन विचार - विमर्श एहि जालवृत पर राखू....

सोमवार, 27 अगस्त 2012

घोंघाउज आ उपराउंज (हास्य कविता)

घोंघाउज आ उपराउंज

(हास्य कविता)



हम अहाँ के गरिअबैत छि

अहाँ हमरा गरिआउ

बेमतलब के करू उपराउंज

धक्कम-धुक्की करू खूम घोघाउंज.



कोने काजे कहाँ अछि

आब ताहि दुआरे त

आरोप-प्रत्यारोप मे ओझराएल रहू

मुक्कम-मुक्की क करू उपराउंज .



श्रेय लेबाक होड़ मचल अछि

अहाँ जूनि पछुआउ

कंट्रोवर्सी मे बनल रहू

फेसबुक पर करू खूम घोघाउंज.



मिथिला-मैथिल के नाम पर

अहाँ अप्पन रोटी सेकू

अपना-अपना चक्कर चालि मे

रंग-विरंगक गोटी फेकू.



अहाँ चक्कर चालि मे

लोक भन्ने ओझराएल अछि

अहाँ फेसबूकिया ग्रुप बनाऊ

अपनों ओझराएल रहू हमरो ओझराऊ.



ई काज हमही शुरू केलौहं

नहि नहि एक्कर श्रे त हमरा अछि

धू जी ई त फेक आई.डी छि

अहाँ माफ़ी किएक नहि मंगैत छी?



बेमतलब के बड़-बड़ बजैत छी

त अहाँ मने की हम चुप्पे रहू?

हम की एक्को रति कम छी

फेसबुक फरिछाऊ मुक्कम-मुक्की करू.



आहि रे बा बड्ड बढियां काज

गारि परहू, लगाऊ कोनो भांज

कोनो स्थाई फरिछौठ नहि करू

सभ मिली करू उपराउंज आ घोंघाउज.
http://kishankarigar.blogspot.com 

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सोमवार, 25 जून 2012

सौराठ सभा : गौरवशाली अतीत, धुंधला वर्तमान



Jun 24, 08:45 pm
फोटो- 24 एमडीबी 1
फ्लैग : कभी जूटते थे लाखों सभैती, कन्या को देखे बिना तय हो जाती थी शादी

सुनील कुमार मिश्र, मधुबनी, निज संवाददाता : विश्व में शादी के लिए इच्छुक वर की सभा लगने का एक मात्र उदाहरण सौराठ सभा है। आषाढ़ के अंतिम शुद्ध में लगने वाली इस सभा में प्रतिवर्ष लाखों ब्राह्माण यहां पहुंच कर वर व वधू का वैवाहिक संबंध तय करते थे। मैथिल ब्राह्माणों के विषय में एक कहावत प्रसिद्ध है कि चट मंगनी पट ब्याह। सो, इस समाज में शादी तय होने के साथ वर व बराती कन्या वाले के यहां पहुंच कर शादी की रस्म पूरी कर लेते थे। बिना किसी आडंबर के शादी करने की परंपरा यहां स्पष्ट थी। लेकिन धीरे धीरे दहेज लोभियों के कारण इस अनमोल परंपरा को ठेस पहुंचने लगी और घर कथा को बढ़ावा मिलने लगा। फिलहाल सभा के उस अस्तित्व को पुनस्र्थापित करने का असफल प्रयास मैथिल ब्राह्माणों द्वारा किया जाने लगा है।
गौरवशाली अतीत
प्रारंभ में सभा का रूप अलग था। यहां देश के कोने कोने से मैथिल ब्राह्माण विद्वान जमा होते थे। उनमें शास्त्रार्थ भी चलता था। इन विद्वत मंडली के साथ युवा शिष्य भी आते थे। वहीं दूर दूर के लोग शास्त्रार्थ सुनने व देखने आते थे और कन्या के लिए उपयुक्त वर चुनते थे। इस तरह खास वैवाहिक लग्न पर वहां विद्वानों की टोली व वर को चुनने के लिए कन्या के अभिभावकों के आने की परंपरा बन गई। इससे वर के चुनाव में दर-दर भटकने के श्रम व अन्य व्यय से मैथिल ब्राह्माणों को राहत मिलती थी। वर कन्या विवाह के लिए अधिकार का प्रमाण पत्र तद्विषयक ज्ञाता के रहने से मिल जाता था।
राजा ने दिया 25 बीघा
चौदहवीं सदी के दूसरे दशक तक वर्तमान पंजी प्रथा का प्रचलन नहीं हुआ था, छिटपुट रूप से वंश परिचय लोग रखते थे। उस आधार पर वैवाहिक अधिकार का निर्णय स्मरण के आधार पर करते थे और इस प्रकार यहां वर का चुनाव होता था। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार महाराज माधव सिंह के राज्यारोहण के समय तक सभा अव्यवस्थित थी। पूर्व में परतापुर व समौल सहित अन्य स्थानों पर सभा लगने का प्रमाण है। राजा माधव सिंह के राजत्व काल से प्रारंभ सौराठ सभा को व्यवस्थित किया गया। राजा ने सभा के लिए 25 बीघे का भूखंड दिए।
अनोखी शादी
मैथिल ब्राह्माणों की शादी की परंपरा अनोखी है। सभा के दौरान कन्या की कब शादी हो जाएगी, पता नहीं रहता।
पाग में आते थे वर
सभा में जाकर वहां से शादी रचाकर घर आना काफी रोमांचित करता था। वर घर से लाल धोती, कुर्ता व ललका पाग धारण कर महिलाओं द्वार चुमावन करने के बाद सभा के लिए प्रस्थान करते थे। वहां वे निर्धारित स्थान पर दरी बिछाकर अपने अंिभभावकों के साथ बैठते थे। जहां कन्या पक्ष के लोग समकुल वर का चयन कर शादी तय करते थे।
बदहाली का दौर
अस्सी के दशक में सौराठ सभा में विकृतियां आने लगी। चोरी छिपे पैसे लेने का चलन शुरू हुआ। धीरे-धीरे सभा में खुले आम पैसे का लेन देन करने लगे। वर्तमान स्थिति यह है कि गत दस वर्षो से यहां नाम मात्र के लोग आते हैं व यहां की दुर्दशा देख भारी मन लिए वापस हो जाते हैं। यहां सभैती के लिए बनाए गए विशाल तीन शेड जर्जर हो चुके हैं। सभा स्थित माधवेश्वर शिवालय मूक गवाह के रूप में खड़ा है।
ऐसा था अतीत
- कुलशील को दिया जाता था महत्व, शादी में लेन देन की नहीं थी परंपरा
- लाल धोती में वास करते थे वर, पांच से पंद्रह बरात जाने की थी परंपरा
- मध्यम व गरीब ब्राह्माणों के लिए वरदान थी सभा
- मिथिला के विभिन्न भागों से ही नहीं अन्य राज्यों के प्रवासी मैथिल ब्राह्माण भी आते थे
बदहाली के कारण
- दहेज प्रथा ने किया कुठाराधात, पैसे के लोभ ने कुलशील विचारों को हाशिए पर डाला
- नवधनाढ्य ने घर कथा को दिया बढ़ावा, दहेज विरोध लेकर महिला संगठन का सभा में प्रवेश
इनसेट :
सभा के पहले लग्न में एक वर शादी को गए
-चौथे दिन 11 सिद्धांत लिखे गए
फोटो 24 एमडीबी 19 
रहिका (मधुबनी), निज प्रतिनिधि : सौराठ सभा के चौथे दिन जहां कुल 11 सिद्धांत लिखे गए वहीं आज प्रथम लग्न में एक वर यहां से शादी करने के लिए प्रस्थान किए। जानकारी हो कि पंडौल प्रखंड के ब्रह्माोत्तरा गांव निवासी बुद्धिनाथ झा व निर्मला झा के पुत्र मिहिर कुमार झा उर्फ महादेव ने बिना दहेज लिए झंझारपुर के लक्ष्मीपुर निवासी लाल बहादुर मिश्र की पुत्री कल्याणी कुमारी के संग शादी करने को प्रस्थान किया। जानकारी हो कि मिहिर ने बिना दहेज के शादी करने की घोषणा की थी। जिस पर सभावधि में लाल बहादुर मिश्र ने वर को चुना व मिहिर के परिजनों से बातचीत कर शादी तय की। मिहिर को नेपाल के विराट नगर से आए दहेज मुक्त मिथिला के अंतर्राष्ट्रीय सचिव प्रवीण नारायण चौधरी व वहां उपस्थित लोगों ने शादी के लिए विदा किया। इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद के अध्यक्ष कमला कांत झा, प्रवक्ता धनाकर ठाकुर सहित अन्य सदस्य गण व सौराठ महासभा समिति के सचिव शेखर चंद्र मिश्र भी उपस्थित थे।
dainik  jagaran - 

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शनिवार, 23 जून 2012


मैथिली - पंचांग  - २०१२-१३ 








































































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शुक्रवार, 8 जून 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट



गजल

अप्टन सुन्दरता के बढ़ा रहल छै
पुष्प दूध सं सुनरी नहा रहल छै

कोमल कोमल देह लागैछै दुधिया
आईख सं बिजुरिया गिरा रहल छै

पैढ़लिय इ सुनारी छै खुला किताब
अंग अंग सुन्दरता देखा रहल छै

पातर पातर ठोर लागै छै शराबी
गाल गुलाबी रस टपका रहल छै

घिचल घिचल नाक चमकै छै दाँत
काजर के धार तीर चला रहल छै

अप्टन लगा गोरी सुनरी लागै छै
मोन मोहि पिया के ललचा रहल छै

दुतिया चान सन चकमक करै छै
ताहि ऊपर श्रृंगार सजा रहल छै

सैज धैज सजनी इन्द्रपरी लागै छै
देख सुनरी के चान लजा रहल छै

-------वर्ण-१४-------
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट

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मंगलवार, 5 जून 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट



गजल

मरि रहल छै सीता सन बेट्टी दहेजक खेल में
बेट्टी पुतोहू जरी रहल छै किरोसिन तेल में

बेट्टा के बाप बेचीं रहल छै मालजालक मोल में
बेट्टीबाला के घर घरारी सब लागल छै सेल में

कs देलन घर घरारी दुलहा के नाम नामसारी
बनी गेलाह ओ दाता भिखारी बाप बेट्टा के मेल में

फेर दुलहा मोटर आ गाड़ी लेल कटैय खुर्छारी
कनिया संग आबैय ओ ससुरारी चैढ कS रेल में

नै भेटला सं मोटर गाड़ी कनिया के देलक मारि
दहेजक लोभी ओ बाप बेट्टा चकी पिसैय जेल में

------------वर्ण-१९-----------
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट

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शनिवार, 2 जून 2012

गजल

सब दान सं पैघ दुनिया में कन्यादान छै
धन टाका सं पैघ दुनिया में स्वाभिमान छै

निर्लज मनुख की जाने मान-स्वाभिमान
दहेज़ मांगब याचक केर पहिचान छै

मांगी दहेज़ टाका रुपैया देखबैय शान
बेचदैय बेट्टा के लोक केहन नादान छै

जैइर मरैय बेट्टी दहेजक आईग में
विआहक नाम सुनीते बेट्टी परेशान छै

सपथ लिय बंधू दहेज़ नै लेब नै देब
आदर्श विआह जे करता ओहे महान छै

आब नै बेट्टी मरत नै पुत्रबधू जरत
दहेज़ मुक्त मिथिलाक एही अभियान छै

---------वर्ण-१६-----------
रचनाकार-प्रभात राय भट्ट

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बुधवार, 30 मई 2012

माए बाप बेटी के जतन सं राखै छै सहेज
ह्रिदय टुक्रा दान करैय में फाटै छै करेज

ख़ुशी के नोर बह्बैत बाप करै छै कन्यादान
दुलहा के चाही टाका रुपैया मागै छै दहेज़

दुलहा बनल याचक बाप बनल पैकारी
की सब चाही दहेज़ ओ सूनाबै छै दस्तावेज

बाप बेचीं घर घरारी दैय छै मोटर गाड़ी
बर मागै सोफासेट बाप तनै छै गोदरेज

दहेजक आईग में जईर कs मरैय बेट्टी
की जाने लोक एकरा कोना करै छै परहेज
--------वर्ण-१७---------------
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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सोमवार, 28 मई 2012

गजल
इ धरती इ गगन रहतै जहिया तक
अप्पन प्रेम अमर रहतै तहिया तक

कहियो तं इ दुनिया बुझतै प्रेमक मोल
प्रेमक दुश्मन जग रहतै कहिया तक

बाँझ परती में खिलतै नव प्रेमक फुल
प्रेमक फुल सजल रहतै बगिया तक

कुहू कुहू कुहकतै कोयल चितवन में
जीवनक उत्कर्ष रहतै सिनेहिया तक

प्रीतम "प्रभात" संग नयन लडल मोर
भोर सं दुपहरिया साँझ सं रतिया तक

..........वर्ण-१६...............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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रविवार, 8 अप्रैल 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट



गजल:-

गजलक शब्द शब्द अछि हिरामोती जेना लगैय ज्योति
जीवनक विछोड मिलन में गजल जेना लगैय मोती

सोचक सागर में डूबी निकालैय कियो हिरामोती
अप्रतिम सुन्दर शब्दक संयोजन जेना लगैय मोती

सुन्दर नारी पर शब्दक गहना भSजाएत अछि भारी
गीत गजल सुन्दर शब्दक रचना जेना लगैय मोती

श्रृंगार रासक शब्द सं अछि नारी केर श्रृंगार सजल
अनुपम शब्दक अनमोल गजल जेना लगैय मोती

निशब्द भावक शब्द बनी ठोर पर घुन्घुनाए गजल
गजलकारक शब्द रचल गजल जेना लगैय मोती

..........वर्ण-२१....................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

गजल @प्रभात राय भट्ट

गजल
एसगर कान्ह पर जुआ उठौने,कतेक दिन हम बहु
दर्द सं भरल कथा जीवनके,ककरा सं कोना हम कहू

अपने सुख आन्हर जग,के सुनत हमर मोनक बात
कहला विनु रहलो नै जाइय,कोना चुपी साधी हम रहू

अप्पन बनल सेहो कसाई,जगमे भाई बाप नहीं माए
सभ कें चाही वस् हमर कमाई,दुःख ककरा हम कहू

देह सुईख कS भेल पलाश,भगेल हह्रैत मोन निरास
बुझल नै ककरो स्वार्थक पिआस,कतेक दुःख हम सहु

मोन होइए पञ्चतत्व देह त्यागी,हमहू भS जाए विदेह
विदेहक मंथन सेहो होएत,कोना चुपी साधी हम रहू

नैन कियो करेज,कियो अधिकार जमाएत किडनी पर
होएत किडनीक मोलजोल, सेहो दुःख ककरा हम कहू

बेच देत हमर अंग अंग, रहत सभ मस्ती में मतंग
बजत मृदंग जरत शव चितंग सेहो कोना हम कहू
.........................वर्ण:-२२.............................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

गजल
कतय भेटत एहन प्रेम जे मीत अहाँ देलौं
मित्रताक कर्मपथ पर मोन जीत अहाँ लेलौं
स्वार्थक मीत जग समूचा,मोन मीत नहीं कियो
धन्य सौभाग्य हमर मोन मीत बनी अहाँ एलौं

स्वार्थक मेला में भोगलौं हम वर वर झमेला
हर झमेला में बनिक सहारा मीत अहाँ एलौं

मजधार डूबैत हमर जीवनक जीर्ण नाव
नावक पतवार बनी मलाह मीत अहाँ एलौं

निस्वार्थ भाव अहाँ मित्रताक नाता जोड़ी लेलहुं
हर नाता गोटा सं बड़का रिश्ता मीत अहाँ देलौं

नीरसल जिन्गीक हर क्षण भेल छल उदास
उदास जिन्गीक ठोर पर गीत मीत अहाँ देलौं

संगीतक ध्वनी सन निक लगैय मीतक प्रीत
कृष्ण सुदामाक प्रतिक बनी मीत अहाँ एलौं
...............वर्ण:-१८.....................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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शनिवार, 28 जनवरी 2012


गजल @प्रभात राय भट्ट

       गजल
हम अहां केर  प्रीतम नहि बनी सक्लहूँ
मुदा अहांक करेजक दर्द बनी गेलहुं

अहां हमर प्रेम दीवानी बनल रहलौं
हम अहांक दीवाना नहि बनी सक्लहूँ

अहां हमर प्रेम उपासना करैत गेलौं
हम आनक वासना शिकार बनी गेलहुं 

अहांक कोमल ह्रदय तडपैत रहल
हम बज्र पाथर केर मूर्ति बनी गेलहुं 

हम अहांक निश्च्छल प्रेम जनि नै सकलौं
अनजान में हम द्गावाज बनी गेलहुं 

आब धारक दू किनार कोना मिलत प्रिये
मजधार में हम नदारत बनी गेलहुं
................वर्ण:-१६ ...............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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बुधवार, 25 जनवरी 2012


गजल@प्रभात राय भट्ट

                    गजल
आई हमर मोन एतेक उदास किये
सागर पास रहितों मोनमें प्यास किये

निस्वार्थ प्रेम  ह्रिदयस्पर्श केलहुं नहि
आई मोनमे बहै बयार बतास किये   

हम प्रगाढ़ प्रेमक प्राग लेलहुं नहि 
आई प्रीतम मोन एतेक हतास किये  

प्रेम  स्नेह  सागर  हम  नहेलहूँ नहि 
आई प्रेम मिलन ले मोन उदास किये   

हम मधुर मुस्कान संग हंस्लहूँ नहि   
आई दिवास्वपन एतेक मिठास किये  

"प्रभात" संग पूनम आएत आस किये  
नहि आओत सोचिक मोन उदास किये  
.................वर्ण-१५............................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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रविवार, 22 जनवरी 2012

नोर झहरि रहल छल।




नोर झहरि रहल छल।

बहिन उठि नैहर सँ सासुर बिदा भेलीह
बपहारि काटि कानि रहल छलीह
हमहू बाप बाप कानि रहल छलहुँ
आखि सँ टप टप नोर झहरि रहल छल।

माए गे माए भैया औ भैया
एसगर हम आब जा रहल छी
भरदुतिया मे आएब अहाँ
एतबाक आस लगेने हम जा रहल छी।

छूटल नैहर केर सखी बहिनपा
आब मोन पड़त सब साँझ भिंसरबा
छूटल बाबू केर दुअरिया
डोली उठा ल चल हो कहरबा।

जाउ जाउ बहिन जाउ अहाँ अपना गाम
भरदुतिया मे आएब हम अहाँक गाम
माए हमर पुरी पका कए देतीह
हम नेने आएब चिनीया बदाम ।

जुनि कानू बहिन पोछू आखिक नोर
आब सासुर भेल अहाँक अप्पन गाम
सास ससुर केर सेबा करब
व्यर्थ समय गमा नहि करब अराम।

जेहने अप्पन माए बाप
तेहने सास ससुर
नहि करब कहियो झग्गर दन
लोक लाज केर राखब धियान।

भैया यौ भैया अहाँ ठीके कहैत छी
नहि करब हम केकरो स झगरदन
सभ सँ मिली जुलि के हम रहब
गृहलक्ष्मीक दायित्व केर करब निरवहन।

मुदा कोना क कहू औ भैया
छूटल नैहर बिदा भेल छी सासुर
माए कनैत अछि बाबू के लगलैन बुकोर
टप टप झहरि रहल अछि आखि सँ नोर।

धैरज राखू बहिन जाउ एखन अपना गाम
राखि मे चलि आएब नैहर बाबू केर गाम
हसी खुशी सँ गीत गाएब
सभ सखी मिली समा चकेबा खेलाएब।

सभ के प्रणाम क बहिन बिदा भेलीह
मुदा स्नेह स कानि रहल छलीह
दुनू भाए बहिन कानि रहल छलहु
आखि सँ टप टप नोर झहरि रहल छल।



लेखक:- किशन कारीगर

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