सुचना: प्रिय मैथिल बंधूगन, किछ मैथिल बंधू द्वारा सोसिअल नेटवर्क (फेसबुक) पर एक चर्चा उठाओल गेल " यो मैथिल बंधूगन कहिया ई दहेजक महा जालसँ मिथिला मुक्त हेत ?" जकरा मैथिल बंधुगणक बहुत प्रतिसाद मिलल! तहीं सँ प्रेरीत भs कs आय इ जालवृतक निर्माण कएल गेल अछि! सभ मैथिल बंधू सँ अनुरोध अछि, जे इ जालवृत में जोर - शोर सँ भागली, आ सभ मिल सपथ ली जे बिना इ प्रथा के भगेना हम सभ दम नै लेब! जय मैथिली, जय मिथिला,जय मिथिलांचल!
नोट: यो मैथिल बंधुगन आओ सभ मिल एहि मंच पर चर्चा करी जे इ महाजाल सँ मिथिला कोना मुक्त हेत! जागु मैथिल जागु.. अपन विचार - विमर्श एहि जालवृत पर प्रकट करू! संगे हम सभ मैथिल नवयुवक आ नवयुवती सँ अनुरोध करब, जे अहि सबहक प्रयास एहि आन्दोलन के सफलता प्रदान करत! ताहीं लेल अपने सभ सबसँ आगा आओ आ अपन - अपन विचार - विमर्श एहि जालवृत पर राखू....

शनिवार, 26 मार्च 2011

दहेज़ प्रथा रोकबाक लेल विचार करत बिहार - सरकार...

इ समाचार सुईंन के जतेक हम खुश भेलो, शायद अहूँ ओतबे खुश होयब...
आय मुंबई में एक समाचार पत्र (यशोभूमि) में एक खबर पढ्लो जाहीं सँ हमरा इ महसूस भेल जे "दहेज़ मुक्त मिथिला" के पुकार बिहार - सरकार सुईंन लेलक...

बिहार सरकार आय स्वीकार केलक कि दहेज़ प्रथाक बुराई के समाप्त करबाक लेल मौजूदा उपाय के अलावा जिलाधिकारी आर पुलिस अधीक्षक के व्यापक अधिकार देबाक लेल विचार करब जरुरी अछि, किए कि अदालत में एहेंन मामला के निपटाबै में बहुत बेसी समय लागैत अछि ! समाज कल्याण मंत्री परवीन अमानुल्लाह प्रश्नोत्तर काल में विधान परिषद में कहलखिन जे बिहार में दहेज़ प्रथा रोकबाक लेल कानून लागू अछि आर अलग - अलग जिला में ओई ठामक जिला कल्याण पदाधिकारी दहेज़ निषेध अधिकारीक रूप में काज के रहल छैथ आर महिला विकास निगम के प्रबंध निदेशक के राज्य में पनपल दहेज़ निषेध अधिकारीक रूप में नियुक्त करल गेल अछि!

समाज कल्याण मंत्री परवीन अमानुल्लाह कहलखिन जे दहेज़ कुप्रथा के रोकबाक लेल राज्य सरकार बहुत कार्यक्रम चले रहल छैथ आ लोग सभ के जागरूक करबाक प्रयास करल जे रहल अछि.....

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शुक्रवार, 25 मार्च 2011

सभ बंधू अपन-अपन परिचय दिअ...

सभ सदस्य सँ आग्रह जे जों कियो (वर, वधु, वा हुनक माता पिता) बिना दहेज़ के विवाह करावक इच्छुक छी, जे जे बंधू हमर सबहक अय आन्दोलन में सहयोग करे चाहैत छी ओ अपन - अपन परिचय निचा प्रकाशित करी :-

नाम :-
पिता के नाम :-
गाँव:-
वर्त्तमान पत्ता:-
शिक्षा:-
वर्त्तमान क्रिया-कलाप:-
जाती:-
गोत्र:-
धर्म:-
संपर्क के साधन:-
अहाँ अपन परिचय ई-पत्र द्वारा dahejmuktmithila@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

धन्यवाद ....

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सोमवार, 21 मार्च 2011

बेटी के दहेज़ के भार (अभय दीपराज )

बेटी के दहेज़ के भार..........

बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!

जे बेटी जननी समाज के, मूल प्रेम - स्नेह के !
अपमानक हम पातक लेत छी, ओहि बेटी के देह के !
अपन मान सँ हम अविवेकी, अपने कयलौं दुर्व्यवहार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!१!!

बड़ ज्ञानी, बड़ शिष्टाचारी, मानव बनि हम जन्म लेलौं !
नीति - न्याय के परिभाषा हम कयलौं, बड़ सद्कर्म केलों !!
सब यश पर भारी ई अपयश, संतानक कयलौं व्यापार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!२

जेहि बेटी में दुर्गा - कमला और सीता के वास अहि !
ओ बेटी अपना नैहर पर बोझ बनल, उपहास अहि !
एहन पातकी - पापी छी हम, हाँ, एहि पातक पर धिक्कार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!३!!

बेटी के अपमानक ई विष, उपटा देलक जों ई फूल !
हमर - अहाँ के, सबहक आँगन में नाचत विनाश के शूल !!
संकट ई गंभीर भेल अब, करिऔ एहि पर तुरत विचार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!४!!

आइ अगर ई व्यथा हमर अछि, काल्हि अहाँ के ई अभिशाप !
एक - एक कय पेरि रहल अछि, सबके एहि ज्वाला के दाप !!
सबहक गर्दन, शान्ति और सुख, काटि रहल अछि ई तलवार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!५!!

बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार !
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार !!
रचनाकार- अभय दीपराज

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गुरुवार, 17 मार्च 2011

सौराठ सभा कि छी ?? - प्रवीण चौधरी

मैथिल विवाहके सभा छी - जाहिठाम लाखोंके संख्यामें वरागत एवं कन्यागत सभक जुटान होइत छल, आब एहिमें एकदम नगण्य सहभागिता भऽ रहल अछि... एहि जुटानमें पंजिकार सभके माध्यमसँ जोड़ी-मिलान एवं विवाह कार्यक्रमके निश्चित कैल जैत अछि।

एहि में सहभागी सभके कमी कियैक?

पहिले घर-कुटमैतीके माध्यमसँ घटकैती कम एवं सभाके माध्यमसँ बेसी होइत छल, लाखों वर-कन्यापक्षके भीड़ भेलाक कारण पंजिकार द्वारा अपन-रुचि-अनुसार वर-कन्याके जोड़ी मिलान होइत छल। क्रमशः जेना-जेना मिथिलाके लोकमें आर्थिक समृद्धि आयल तहिना-तहिना घर-कुटमैतीके संख्या बढय लागल... पहिले जतय हजारमें ब्यवस्था भऽ जाइत छल ताहिठाम क्रमशः लाखमें बात होवय लागल, जाहि कारण प्रत्येक वरागत पक्षमें लोभके प्रविष्टि भेल एवं एहि तरहें लोक सभागाछी कम आ घर-कुटमैतीके माध्यमसँ बेसी पाइ के लोभमें इ प्रथा में कमी आयल। सभागाछीमें एक कूरीतिके सेहो प्रवेश भेल - पंजिकार द्वारा एवं अन्य बिचौलियाके द्वारा ठकविद्या सेहो प्रवेश करैत लोकके विश्वासमें कमी आनैत गेल एवं एहि तरहें धीरे-धीरे तथाकथित नीक लोक सभके सहभागिता सेहो कम भेल। सरकारी उपेक्षा सेहो एक प्रमुख कारण भेल!

सभागाछी के फेर आवश्यकता किऐक?

आइ जखन मैथिल सभ मात्र अपन पूर्वजके भूमिटापर नहि बास करैत भारत एवं विश्वके अनेक कोनमें पहुँचि गेलाह अछि... कतेक गोटे तऽ सालमें एक बेर गाम अबैत छथि, कतेक गोटे तऽ पाँच साल आ कतेक गोटे तऽ १०-२०-२५ साल सऽ बाहरे छथि... तखन हिनक धिया-पुताके गाममें या मिथिलाके लड़की-लड़का कोना भेटत, ताहि हेतु एक केन्द्र जाहि ठाम निश्चित समयपर फेर पहिले जेकाँ भीड़ लागय एहि हेतु सभा गाछीके आवश्यकता अपरिहार्य बुझैछ।

सभागाछीके आधुनिकता कोना?

आइ कंप्युटरके युग छैक। पंजीकरणके कंप्युटर द्वारा डेटा-प्रोसेसिंग होयबाक चाही एवं सुटेबल मैचके निर्णय सेहो कंप्युटर मैचिंग/सर्चिंग अप्शन आदि द्वारा वेबसाइटके मार्फत उपलब्ध होइक, एवं समयपर हुनका लोकनिक समुचित साक्षात्कार हेतु सभा लगबाक चाही। एहि तरहें बेसी सँ बेसी सहभागिता सेहो होयत आ ठकविद्या आदि सेहो नहि चलत, लोक सभ एक दोसरके बारेमें कंप्युटर द्वारा पहिले सऽ जे जानकारी जुटायत से तऽ हेवे करतै आ सभामें आबि ओकरा प्रत्यक्ष आरो विकल्प सभ भेटतैक।

सामूहिक विवाह आदिके विकल्प सेहो खुलतैक।

सभ जाति हेतु इन्तजाम होयबाक जरुरी छैक।

सरकार द्वारा सेहो एहि प्रथाके प्रोत्साहन भेटतैक।

गरीबी रेखासँ नीचा हेतु सरकारके संग अन्य निजी दान एवं सहयोगके सेहो गुंजाइश बढतैक।

एहि प्रकारें - सम्बन्धित अनेक बात भऽ सकैछ जाहिपर हमर ध्यान नहि पहुँचल होयत, अपने लोकनि सेहो नीक विन्दुपर आरो प्रकाश द‍ऽ सकैत छी... दहेज आदि के सेहो स्वतः विरोध होइ, आदर्श कुटमैती होयत... अपने लोकनि अपन-अपन विचार राखू।

जय मैथिली! जय मिथिला!!

अपनेक विचार पढबाक आश में - प्रवीण चौधरी ‘किशोर’

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बुधवार, 16 मार्च 2011

संपूर्ण मिथिलावासी सँ हमर अपील!

संपूर्ण मिथिलावासीकेँ सूचित करैत अपार हर्ष भऽ रहल अछि जे आगामी २० जुन सँ २९ जुन २०११ धरि सौराठससौलासभा के मुहुर्त अछि। हलाँकि विगत किछु सालमें एहि सभाके समर्थन मूल्य में नहि सिर्फ ह्रास आयल बल्कि लगभग इ महत्त्वपूर्ण प्रथा लगभग लोपोन्मुख भऽ गेल अछि। जखन कि मैथिलवैवाहिकसभाके रूपमें प्रख्यात एहि सभाके मूल्य किनकहु सँ छुपल अछि से बात नहि। जेना-जेना हमरा लोकनि झूठ आ आडंबरमें फंसैत गेलहुँ, तहिना-तहिना मैथिली एवं मिथिलाके सर्वमान्य सिद्धान्त सभके छोड़ैत गेलहुँ। अतः समग्र मैथिल समाजसँ आग्रह जे एहि सभाके पुनर्जीवित करैक लेल, एकर गरिमाके पुनरुत्थान करैक लेल फेर सँ सभ केओ एकजूट भऽ के सभाके सफल आयोजन हेतु बेसी सँ बेसी संख्यामें सहभागी बनी।

एहि अभियानके जोर-शोरसँ प्रचार करय हेतु हमर निवेदन जे अपने जाहि गाम-शहर-बाजारमें जतेक मैथिल होइ, ताहि ठाम समुचित विज्ञापन एवं जन-जागरण के माध्यमसँ सभसँ सम्पर्क करैत हुनका लोकनिकेँ सौराठ सभामें उचित सहभागिता हेतु निवेदन करी।

जय मैथिली! जय मिथिला!!

अपनेक विचार पढबाक आश में - प्रवीण चौधरी ‘किशोर’

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मंगलवार, 15 मार्च 2011

आदर्श विवाह - प्रभात राय भट्ट..

हम छी मिथिलाक ललना,
दहेज़ ला क बनब नए बेल्गोब्ना,
दहेज़ लेनाए छई अपराध,
कियो करू नए एहन काज,
हम करब विवाह आदर्श,
अहू लिय इ सुन्दर परामर्श,
भेटत सुन्दर शुशील कनिया,
आहा स प्रेम खूब करती सजनिया,
आँगन में रुनझुन रुनझुन,
बाजत हुनक पैजनिया ,
घर केर बनौती सुन्दर संसार,
भेटत बाबु माए केर सेवा सत्कार,
छोट सब में लुटवती वो दुलार,
अहक भेटत निश्छल प्रेमक प्यार,
जौ दहेज़ लयक विवाह करबा भैया,
कनिया भेटत कारिख पोतल करिया,
हुकुम चलैतह शान देखैतह,
बात बात में करतह गोर्धरिया,
अपने सुततह पलंग तोरा सुतैत पैरथारिया,
बात बात में नखरा देखैतह,
भानस भात तोरे सा करैतह,
अपने खेतह मिट माछ खुवा मिठाई,
जौं किछ बाजब देतः तोरा ठेंगा देखाई,
रुईस फुइल नहिरा चईल जेताह,
साल भैर में घुईर घर एतः
सूद में एकटा सूत गोद में देतः
पुछला स कहती इ थिक अहाक निशानी,
आब कहू यौ दहेजुवा दूल्हा,
आहा छी कतेक अज्ञानी ???
तेय हम दैतछी यी सुन्दर परामर्श,
सुन्दर शुशील भद्र कनिया भेटत,
विवाह करू आदर्श,विवाह करू आदर्श!!!

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शुक्रवार, 11 मार्च 2011

रस्ता के रोड़ा.. (इ कोई कहानी नहीं अछि!)

सोशल नेटवर्किंग के इ जमाना में हम किछु दिन स एकटा सोशल नेटवर्किंग साईट फेसबुक पर काफी सक्रीय रहैत छि.. अओर इ हमर अनुमान अछी जे बहुतेक लोग जे इन्टरनेट प्रयोग करैत होयताह, उ जरूर फेसबुक के बारे में बुझैत होयताह. फेसबुक पर एकटा मैथिलि स सम्बंधित बहस-सूत्र (Discussion thread) अछि जेकरा पर सदस्य सब मिथिला आ मैथिलि के बारे में अपन अपन राय विचार दैत रहैत छैथ. ओही बहस-सूत्र में एकटा माननीय सदस्य प्रश्न उठओलैथ जे हम सब मैथिल छी अओर इ मंच पर अपन राय मैथिलि के बजाय कोनो दोसर भाषा (मुख्यतः अंग्रेजी) में कियक दैत छि? बहुत गोटे के प्रतिक्रिया आयेल, किछु अपन विचार सभ्य तरीका में प्रकट केलैथ, त किछु लोग अंग्रेजी में लिखय वाला के खूब खिल्ली उदओलैथ.. (किछु अशोभनीय विशेषण भी देल गेल उनका लेल जे अपन राय अंग्रेजी में लिखैथ छैथ! जेनाकी: मुह्चोरबा, कुक्कुर के नान्गड़ इत्यादी.. :-))
मुख्यतः जे हमरा समझ में आयल उनकर सबके विचार पढला के बाद ओकर सारांश निम्नवत अछि:
(१) जे लोग अंग्रेजी में लिखैत छैथ उनका अंग्रेजी नीक जँका नहीं आवैत छाई तयं ओ मैथिलि फोरम पर अंग्रेजी में लिखित छैथ; कियाकि अगर ओ अंग्रेजी फोरम पर अंग्रेजी लिखतः ता उनकर अंग्रेजी के गलती पकड़ा जेतैइ. (हमर समझ स इ विचार त बहुत हास्यास्पद अछि, अहाँ की कहैत छि?)
(२) जे लोक अपन बच्चा सब के अंग्रेजी सिखावैत छैथ , ओ अपन बच्चा के भविष्य पर ग्रहण लगावैत छैथइ.
(३) अगर कोई सदस्य अंग्रेजी में अपन विचार लिखने छैथ, त फोरम के करता-धर्ता (Moderators) के द्वारा तुरंत ओही विचार (Comments) के मिटा (Delete) देल जाओइ. (हमर राय: इ त ओहिना भ गेल जेनाकी सीयार-सारस के कहानी, जेकरा में मेहमान के बजाक उनका भुखले राखु कियाक त उनकर खाई के तरीका मेजबान स अलग थिक!)

जहाँ तक हमार समझ अछि, कियो गोटे के विचार प्रकट करै में भाषा के रुकावट ताबैत धरी नहीं होयबाक चाही जाबित धरी पाठक/सदस्य (Audience) के ओही भाषा के समझाई में कोनो समस्या नहीं होई. मातृभाषा के प्रयोग आ बढ़ावा देनाई अत्यावश्यक थिक परन्तु अगर अहाँ एही चीज में उलझब त अपन आप के कूपमंडूक बना लेब. हम इ बातक हार्दिक समर्थन करैत छि जे नव-पीढी के लोग के मैथिलि अधिकाधिक प्रयोग करबाक चाही, परन्तु अगर अहाँ के इच्छा अछि जे हमर प्रदेश भी दोसर (विकसित/संपन्न) प्रदेश के माफिक या अओर नीक होय त हमरा सब के मानसिक रूप स अधिक विकसित होबय पडत. महात्मा गाँधी कहने छैथ, "हम नै चाहैत छि जे हमर घरक चारू दिस स दिवार रहै आ हमर घरक खिड़की सब हमेशा बंद रहै. हमर इच्छा अछी जे सब तरहक संस्कृति के प्रवेश हमर घर में होय; परन्तु, इ बातक ध्यान रखे पडत जे बाहरक संस्कृति स हमर कदम नै डगमगाई.(I do not want my house to be walled in on all sides and my windows to be stuffed. I want the cultures of all the lands to be blown about my house as freely as possible. But I refuse to be blown off my feet by any, by M. K. Gandhi)"
सम्मानित पाठक-गण, अहूँ सब सोचैत होयब जे 'दहेजमुक्त मिथिला' के मंच पर हम इ की लिख रहल छि? से, आब हम मुद्दा के बात पर आबैत छि.

मिथिला के दहेज़ के मकडजाल स मुक्त करै के रस्ता में सबस पैघ बाधा हमर सबहक एहन तरहक सोच अछि! जाधैर हम सब अपन सोच के कनी विस्तृत नै करबय, ताबैत हम सब इ कुरीति के केनाक दूर क सकैत छि? एही दिशा में हमर तर्क अछि जे:
(१) अपन सोच के विस्तृत करी ताकि हम सब भाषाई अओर भौगोलिक सीमा स आगू बढ़ी के इ मुद्दा पर मंथन होय.
(२) इतिहास गवाह अछि जे जे गोटे अपना आप के एही तरहक बंधन में सिमित केतह, ओ या त विकास नहीं क सकलाह या धीरे धीरे ख़त्म भ गेलाह. वर्तमान में अगर अहाँ दुनिया के साथ चलबाक इच्छुक थिक त अहांके सीमान्त सोच स आगू बढ़ पडत. समस्या चाहे दहेज़ के होय या अशिक्षा के, जाबित हम सब अपन सोच नहीं विस्तृत करबय, ताबैत हम सब ओकरा स लड़ी नहीं सकैत छि.
(३) एकटा मुख्य गप्प, जे माननीय लोग अंग्रेजी में प्रकट विचार के ल क अतेक सख्त-प्रतिक्रियावादी भ सकैत छैथ, ओ दहेज़ (या दहेजक विभिन्न रूप) स्वरूपी प्रथा के दूर करै के बात केनाक स्वीकार करताह? आखिर दहेज़ प्रथा भी त हमर सबहक संस्कृति स जुडल अछि (या कालांतर में संस्कृति सं जोड़ी देल गेल अछि!)!
(४) दहेज़ प्रथा के मिटाबाई के लेल हमरा सबके काफी प्रतिरोध के सामना कराय पडत, इ बात त बुझल थिक. अगर हम अपन बहिन-बेटी के स्वाबलंबी नहीं बनायब त ओ विवाहक बाद ओही स्थिति में रहत जे में हमर सबके दादी-नानी अओर पूर्वज-स्त्रीगण रहैत छलैथ. स्वाबलंबी बनाबाई के उद्देश्य ओकरा पति के सहयोग देबय के योग्य बनोनाई अछि, मानसिक, वैचारिक, सामाजिक, अओर वक्त पडला पर आर्थिक सहयोग भी. एही के लेल भाषाई या क्षेत्रीय सीमा स ऊपर उठय पडत. (हम इ बातक उम्मीद करैत छि जे किछु गोटा हमर राय स पूर्ण रूपेण सहमत नहीं होयताह, परन्तु इ त सामूहिक वार्तालाप के अभिन्न अंग थिक न??)
(५) किछु लोग के मन में इ शंका भ सकैत छै जे ऐना त हमर सबहक मैथिलि के सशक्त करै के उद्देश्य नहीं सफल होयतै! लेकिन, अहाँ गौर करू, दोसर भाषा के प्रयोग आ समर्थन मैथिलिक विकास में संभवतः कोनो बाधा नहीं डालत. हम अगर वैचारिक रूप स संपन्न रहब तखने हम सब अपन भाषा के अओर सशक्त करै के दिस कोनो ठोस कदम उठा सकैत छि. हम अगर सिर्फ-आ-सिर्फ मैथिलि के प्रयोग करै के समर्थक रहब त संभवतः हमरा सभके उन्नति के पर्याप्त अवसर नहीं भेट पाओत आ आख़िरकार अपन भाषा के ल क अपन मन में सम्मान कम भ जायेत; एकर विपरीत अगर हम समकालीन विचारधारा के समर्थन करैत आई के जमाना में जे भी जरूरत होयत ओ भाषा में भी संपन्न होयब त सामाजिक, वैचारिक, आ संगही आर्थिक उन्नति भी होयत.

हाँ, एकटा बात त अन्तर्निहित अछि जे हर चीज के नीक आ बेजाय दुनूं तरहक प्रतिफल होयत अछि, से ल क परिणाम हमरा सब पर निर्भर करैत अछि जे हम सब कोना क अपन सोचक दायरा विस्तृत करैत मिथिला के एही कुरीति स निजात दियाबई के दिशा में अग्रसर होयत थिक या केवल संकुचित मुद्दा सब पर अपन गाल बजाबाई रहब?

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कुमारी धिया - प्रभात राय भट्ट..

सुनु सुनु यौ मिथिलावासी आऔर मिथिलाक बाबु भैया !!
संगी सखी सभक भेलई ब्याह, हमर होतई कहिया !!
तिस वरखक भेली हम, मुदा अखनो रहिगेली कुमारी धिया !!
हमरा लेल नए छाई संसार में, एक चुटकी सिंदुरक किया !!
रोज रोज हम सपना देखैत छि, डोली कहार ल्या क ऐलैथ पिया !!
आईख खुलैय सपना टूटईय, जोर जोर स: फटईय हमर हीया !!
गामे गाम हमर बाबा घुमैय,ल्याक हाथ में माथक पगरी !!
कतहु वर नए भेटैय,की विन पुरुख के छई यी मिथिला नगरी ?!!
बेट्टावाला केर चाहि पाँच दश लाख टाका आ गाड़ी सफारी !!
तिनचाईर लाख टाका ऊपरस:जौ चाहैछी जे ओझा करे नोकरी सरकारी !!
अन्न धन्न गहना गुरिया एतेक चाही जे भईरजाई हुनक भखारी !!
बेट्टीवाला दहेज़ में सबकुछ लुटा क अपने भजाईत अछि भिखारी !!
बाबा हमर खेत खलिहान बेच देलन आ बेच रहल छैथ अपन घरारी !!
अहि कहू यौ मिथिलावासी आऔर मिथिलाक बाबु भैया !!
कतय स:देथिन बाबा हमर दहेज़ में एतेक रुपैया !!
रचनाकार: प्रभात राय भट्ट

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बालविबाह - प्रभात राय भट्ट

आहा जे नई भेटतौ त जिनगी रहित हमर उदास !!
सागर पास होइतो में बुझैत नई हमर मोनक प्यास !!
अहि स पूरा भेल हमर जिनगी केर सबटा आस !!
नजैर में रखु की करेजा में राखु अहि छि हमर भगवान !!
उज्जरल पुज्जरल हमर जिनगी में आहा एलौ !!
रंग विरंग क ख़ुशी केर फूल खिलेलौं !!
की हम भेलू अहाक प्रेम पुजारी ,अहा हमर भगवान यौ !!
मुर्झायल फूल छलौ हम ,अहि स खिलल हमर प्रेमक बगिया !!
बालविधवा हम अबोध छलौ ,समाज केर पैरक धुल !!
उठैलौ अहा हमरा करेजा स लगैलौ, बैनगेली हम फूल !!
पतझर छलौ भेल हम,सिच सिच क अहा लौटेलौ हरियाली !!
अनाथ अबला नारी के अपनैलौ आ बनेलौ अपन घरवाली
अहि स यी हमर जिनगी बनल सुन्दर सफल सलोना !!
गोद में हमर सूरज खेलैय,अहा बनलौ बौआक खेलौना !!
हमर उज्जरल पुज्जरल जिनगी में अहा येलौ !!
रंग विरंग क ख़ुशी केर फूल खिलेलौ,ख़ुशी स हमर आँचल भरलौं !!
हमर मन उपवन में अहि बास करैत छि, अहि केर हम पूजित छि !!

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गीत बालविबाह - प्रभात राय भट्ट

हम नए ब्याह करब यौ बाबा वालीउमरिया में !!
पढ़ लिख खेल कूद दिय,हमरा अपन संग्तुरिया में !!
निक घर वर भेटल छौ,दहेज सेहो कमे मंगैछौ !!
आगुम की हेतै से नए मालूम,ब्याह करहीटा परतौ !!
ब्याह करहीटा परतौ गे बेट्टी..............
हम चौदह वरखक कन्याकुमारी अहाक राजदुलारी !!
मुदा दूल्हा छैथ विदुर आ पाकल हुनक केस दाढ़ी !!
हम नए ब्याह करब यौ बाबा वालिउमरिया में २ !!
दूल्हा विदुर भेलई तईस: की धन सम्पति अपार छई !!
भेटतौ नए कतौ एहन घर वर दूल्हा सेहो रोजगार छई !!
रुईक जाऊ रुईक जाऊ बाबा यौ हमरा पैघ होब दिय !!
पैढ़लिख क हमरो कोनो सरकारी नोकरी करदिय !!
बेट्टावाला अहाक दरवाजा पर अओता !!
कहता अहाक बेट्टी स:हम अपन बेट्टा क ब्याह करब !!
अहा कहब नै नै अखन हम बेट्टी क ब्याह नए करब !!
फुइक फुइक क चाय पीयब ,अहू किछ शान धरब !!
हम नए ब्याह करब यौ बाबा वालिउमरिया में !!
एक लाख टका के बात कहले तू भगेले सयान गे !!
बेट्टी क भविष्य नए सोचलौ,हमही छलौ नादान गे !!
बेट्टी क ब्याह कोना हयात सतौने छल हमरा दहेज़ क डर !!
बाल विबाह करबई छलौ,खोईज लेलौ बुढ्बा वर !!
नए ब्याह करबौ गे बेट्टी तोहर वालिउमरिया में !!
पढ़ लिख खेलकूद तू अपन संगतुरिया में !!

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बुधवार, 9 मार्च 2011

दहेज़ प्रथा जायज? ब्लोगक पोल के परिणाम!

इ ब्लॉग पर एकटा पोल (Poll /Vote your opinion) सेहो अछि. अचानक सा हम ओकर परिणाम देखलौं त हम चौंक गेलौं: ९१% नाजायज और ८% जायज (११:१). किछ लोग के विचार में दहेज़ प्रथा अखनो जायज थिक; हालाँकि केवल एकही टा वोट इ पक्ष में अछि, परन्तु आखिर किनका राय में इ (कु)रीति जायज थिक?
एही ओपन फोरम के माध्यम स हम इ ब्लोगक अनुसरनकर्ता सब गोटेक राय जनिक इच्छुक छि जे ओ सम्मानित सदस्य जे कोई भी छैथ, कृपया क एही पक्ष में अपन राय जरूर बतावैथ जे इ प्रथा केनाक जायज अछि?

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सोमवार, 7 मार्च 2011

कारण बताऊ -------की सम्भब्भ अछि जे दहेज़ प्रथा के अपना समाज से उठायल जा सकैत अछि ?

की सम्भब्भ अछि जे दहेज़ प्रथा के अपना समाज से उठायल जा सकैत अछि ?
कारण बताऊ -------

अहि प्रथा के अन्तोगातावा कोनाक हेताय ? जे आगू के जिनगी में जिबैय के कारण बन्तैय
अपन बिचार किछ अहं द सकैत छि ? ----
बहुत बुजुर्ग सब गेलैथी और छैथि ,जे कतेको सस्त आ महाग जिनगी देखलखिन अनुभाभ केलैथि , आ बहुत रास अपन कीर्ति सेहो क गेलायथी, की हुनकर ई जरुरत नै छालें जे अहू के ख़तम का दिय , की हुनक सबके निक लागैत अछि जे आगू के पीढ़ी में हमर बल - बच्चा के की हेतयक , आ नव युबक के त जबाब नै जे , की देखता आ की करता अपन जिनगी में ,

किछ अहै बात पर उलेखय अछि जे से जानू ------

१ . लोग कहैत अछि जे , नव्युबक अगर प्रेम वियाह पर जोर देथिन त ई समस्या के किछ निदान हेतैय

२ . अगर प्रेम वियाह पर धयान देल जय त अहि से मिथिलांचल के संस्कृत पर आंच नै अबैत अछि , जकर कारण अछि जाती प्रथा , एगो वर्ण दोसर वर्ण में वियाह नै क सकैत अछि , ई मिथिला के प्रधानता अछि , अगर प्रेम प्रधानता पर बिचार करी त ई उछित नै , प्रेम जैत और सकल नै देखैत अछि प्रेम अछि त नाम और जैत नै ,

३. अगर दहेज नै लैत छि त हम सब लोग से मजबूर बनल छी ,कारण जे आई के जुग में सब अपन पद प्रतिस्ठा के लेल जीबैत अछि ,

४ . दहेज़ आर्थिक अबस्था पर सेहो प्रभाब करैत अछि , यदि जीतू जी के लग धन्सम्पति अपार छैन , ओ फाला जा के ओहिठाम केना कुटमैती करता , हुनका लग भोजन करैक ले सही बैबस्था नै छैन , ओहीठाम एक दोसर के समाबेस भेनाई बहुत कठिन लागैत अछि , एकर बराबरी होयत दहेज़ से , जे हिनका लग एतेक ओकात छैन ,

४ . एकर जिमेबार के अछि ? हम की अहाँ या कियो और ?
उतर भेटल जे सब कियो --- से केना ? अहाँ बताऊ

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हमर फोटो कहियाअ


हमर फोटो कहियाअ \
कन्या भ्रूणहत्या पर एकटा कथा।


कुसुम दाई भिंसरे सॅं हिंचैक-हिंचैक के कानि रहल छलीह किएक ने जानि से हमरो नहि बूझना गेल। ऑखि सॅं टप-टप नोर झहैर रहल छलैक कनैत-कनैत केखनो के हमरो दिस तकैत मुदा एक्को बेर चुप हेबाक नाम नहि। हम कॉलेज सॅ पढ़ा केॅं विद्यार्थी सभ के जल्दीए छुटटी दए के किछू काज सॅं आएल रही। जहॉ अंगना अएलहूॅं की केकरो कनबाक अवाज़ सुनलहॅू लग मे गएलहूॅ त देखलीयै जे कुसुम दाई कानि रहल छेलीह। हम लग मे जाके कुसुम के कोरा लेबाक प्रयास कएलहॅू मुदा ओ रूसि केॅं बाजल जाउ पप्पा हम अहॉ सॅ नहि बाजब। एतबाक बाजि ओ रूसि के बरंडा पर सॅ घर चलि गेल। हम दुलार कए के बजलहूॅ कुसुम अहॉ के की भेल हमर सुग्गा ने अहॉ बाजू ने। एतबाक सुनि ओ ऑखिक नोर पोछैत बाजल बाबू अहॅू बेईमान भए गेलहूॅ त आब हम केकरा सॅ अप्पन दुखःक गप कहियौअ अहि निसाफ कहू ने हमर फोटो कहियाअ \
ई गप सुनि हम कनेक अचंभित भए गेलहॅू हम फेर सॅं पुछलहूॅ कुसुम अहॉ किएक कानि रहल छलहॅू की भेल से कहू ने। त ओ बाजल बाबू अहॉ त माए के बुझहा सकैत छियैक हमर फोटो लगेबा मे कोन हर्ज हमहूॅ त मनुक्खे छी ने फेर हमरा सॅ बेइमानी किएक? अहिं कहू जे हमर फोटो कहियाअ? एतबाक मे हमर कनियॉ चाह बनौने अएलीह कि ताबैत कुसुम दाई धिया-पूता सभ संगे खेलाई धूपाई लेल चलि गेल। हम एक घोंट चाह पीबि के अपना कनियॉ सॅं पुछलहॅू कुसुम किएक कानि रहल छलैक। हमर कनियॉ मुहॅ पट-पटबैत बजलीह मारे मुहॅ धए के अहिं त ओकरा दुलारू सॅ बिगाड़ि देने छियैअ त अहिं बुझियौअ। हमरा त एखने सॅ निलेशक चिंता लागल अछि केहेन होएत केहेन नहि। हम बजलहॅू बेटाक चिंता त अछि अहॉ के मुदा ई बेटीयो त हमरे अहिंक छी एक्कर चिंता के करतै एसगर हमही की अहॅू? एतबाक सुनि हमर कनियॉ मुहॅं चमकबैत रसोइघर दिस चलि गेलिह।
भिंसर भेलैक मुदा राति भरि हम ऑखि नहि मूनलहॅू एक्को रति नीन नहि आएल। भरि राति सोचैत विचारैत रहि गेलहॅू मुदा कुसुम के प्रशनक कोनो जवाब नहि सूझल। भिंसर ठीक सात बजे कुसुम दाई स्कूल जाइ लेल स्कूल बैग लए बिदा भेल त हमरा रहल नहि गेल। हम बजलहॅू कुसुम आई अहॉ स्कूल नहीं जाउ हमहॅू आइ कॉलेज सॅ छुटटी लए लेने छी तहि ,द्वारे दूनू बाप-बेटी भरि मोन गप-शप क लैत छी।एतबाक सुनि कुसुम फुदकैत हॅसैत हमरा लग मे आबि गेल कि हम ओकरा कोरा मे लए के झुला झुलाबए लगलहॅू। कुसुम बाजल पप्पा आई अहॉ पढ़बै लेल कॉलेज किएक नहि गेलहॅू अहॉ कथिक चिंता मे परि गेलहॅू से कहू।
हम बजलहॅू चिंता एतबाक जे अहॉक फोटो कहियाअ? मुदा अहॉ हमरा फरिछा के कहब तखने हम बूझहब हमरा अहॉक प्रशनक कोनो जवाब नहि भेट रहल अछि त अहिं साफ साफ कहू। एतबाक सुनि कुसुम दाई बाजल अहिं कहू त पप्पा अहॉ पी.एच.डी माए हमर एम.बी.ए मुदा देबाल पर हमर फोटो नहि। एहि ,द्वारे त हम समाजक सभ लोक सॅ पूछि रहल छी जे हमर फोटो कहियाअ? समाजक सोच कहियाअ बदलत। एक त कोइखे मे हमरा मारि देल जाइत अछि। जॅं बॅचियोअ जाइत छी त हमरा दाए-माए सभक मुहॅ मलीन भए जाइत छन्हि। ओ पहिने सॅ पोता बेटा हेबाक स्वपन देखैत छथहिन मुदा बेटी हेबाक सपना कियो ने देखैत अछि।
देखैत छियैक गर्भवति माउगी सभ दू-चारि मास पहिने सॅ देवाल पर बेटाक फोटो लगेने रहैत छैक। अड़ोसी पड़ोसी बजैत छथहिन हे महादेव एहि कनियॉ के बेटा देबैए फलां दाए के पोता देबैए। बेटा हाइए ,द्वारे कौबला पाति सॅ लए के अल्टॉसाउण्ड तक ई पूरा समाज बेटीक दुश्मन अछि। हमर माए त एकटा बेटीए छथहिन मुदा कहियोअ सेहन्तो देवाल पर हमर फोटो नहि लगेलखिन। त हम कोन खराब गप पुछलहूॅ जे हमर फोटो कहियाअ। कोन दिन समाजक सोच बदलत कहियाअ माए बहिन सभ देवाल पर बेटीक फोटो लगेतीह? कहियाअ बेटीक जनम भेला पर ढ़ोल पिपही बजा खुशी मनाउल जाएत मधुर बॉटल जाएत? देखैत छियैक बेटाक जनम भेला पर जिलेबी बुनियॉ मुदा बेटीक जनम भेला पर गुड़-चाउर बॉटल जाइत अछि।ई हमरा सॅ बेईमानी नहि त आर की थीक? पप्पा आई हम समाजक सभ लोक सॅ पूछि रहल छी हमर निसाफ कहियाअ?
एखन हम कॉचे-कुमार छी मुदा जेना एखने सॅ हमरा बुझना जा रहल अछि जे हमर कुसुम दाई दुःखित भेल हमरा सॅ हमरा समाजक सभ पुरूख-माउगी सॅ पूछि रहल अछि बाबू अहिं निसाफ कहू हमर फोटो कहियाअ \\

लेखक:- किशन कारीग़र
परिचय:- जन्म- 19830(कलकता में) मूल नाम-कृष्ण कुमार रायकिशन। पिताक नाम- श्री सीतानन्द राय नन्दू माताक नाम-श्रीमती अनुपमा देबी।मूल निवासी- ग्राम-मंगरौना भाया-अंधराठाढ़ी, जिला-मधुबनी (बिहार)। हिंदी में किशन नादान आओर मैथिली में किशन कारीग़र के नाम सॅं लिखैत छी। हिंदी आ मैथिली में लिखल नाटक आकाशवाणी सॅं प्रसारित एवं दर्जनों लघु कथा कविता राजनीतिक लेख प्रकाशित भेल अछि। वर्तमान में आकशवाणी दिल्ली में संवाददाता सह समाचार वाचक पद पर कार्यरत छी। शिक्षाः- एम. फिल(पत्रकारिता) एवं बी. एड कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र सॅं।


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आउ! दहेज उन्मूलन योजना बनाउ...

एहि जालवृतपर बेसी युवक लोकनिक जमघट अछि, एहि बात के ध्यानमें रखैत - संगहि अन्य किछु थ्रेडपर विभिन्न प्रकारक वार्तालाप, आलाप-प्रलाप, आदि के सेहो ध्यानमें रखैत - आ तहु सऽ बेसी जे वास्तविक जीवनमें हमरा-अहाँसंग वास्तवमें दहेजसँ सम्बन्धित घटना-परिघटना घटित भऽ रहल अछि - ताहि सभके समग्र रूपमें ध्यान में रखैत हम चाहैत छी जे अपने लोकनि अपन समयके सकारात्मक दिशामें प्रयोग करी - दोसर हेतु नहि, अपना हेतु शपथ खाइ जे -

"हम मानव जीवनके धारमें सभ मानवके अपनहि समान बुझि प्राकृतिक न्यायसँ भरल व्यवहार करब।"

एहि शपथकेर मूल अर्थ एतबे छैक जे हम अपना लेल जे दोसरसँ अपेक्षा रखैत छी, हमहुँ दोसर प्रति तहिना श्रद्धा-भावपूर्ण व्यवहार करब।

१. यदि हम अपन बेटी हेतु नीक घर-वर तकैत छी, आ पैसा-वस्तु-दहेज देबयके लेल तत्पर छी, अवश्य हम दोसरोसँ अपेक्षा राखब जे हमरो बेटा बेरमें सूदि सहित असूलब। ;) मुदा कि प्राकृतिक न्याय भेलैक एहिठाम?

हमर विचारसँ - जरुरी नहि छैक जे हम जेहि श्रेणीमें छी, ताहि श्रेणीक दोसर परिवार कोनो वैज्ञानिक तराजूपर, वेभसाइटपर, धरातलपर, सौराठ सभामें... या कोनाहु तुरन्त भेटि जाय - विरले एहेन जोड़ी बनैछ - वर-कन्याके जोड़ी जे सभ प्रकारसँ अकाट्य होइ, समधि-समधिनके सम्पन्नता एवं व्यवहारिक ज्ञानमें समानता, भाषा-धर्ममें समानता, संस्कारमें समानता, आदि अनेक बात छैक जे लोक अपन समान दोसरमें तकैत छै कुटमैतीके समय में। तऽ पहिल विन्दुपर देखल जाय तऽ इ कहनाइ असम्भव छैक जे अपने दहेज दैक लेल सक्षम छी तऽ लेबयके लेल सेहो तत्पर रहू तऽ न्याय होयत, एकदम अन्याय हेतैक। यदि अपने सहीमें मानव छी, मानवताक धर्म सर्वोपरि मानैत छी, प्राकृतिक न्यायमें विश्वास अहि तऽ एहि भ्रांतिके दूर करू। जतेक अपनेक क्षमता अहि, ताहि प्रकारसँ बेटीके विदाई करी, एवं तहिना बेटाक समयमें समधिक पक्षकेँ, स्वायत्तताकेँ, स्वेच्छाकेँ सम्मान करियौन; नहि कि माँग रखियौन, दबाव बनबियौन... वर-कन्याक आत्मा कोना एक अर्ध-नारीश्वर शिव बनत ताहिपर मात्र विचार करियौक। एहि चेतनाकेँ सदा अपनाउ आ एकरा सम्बर्धन करियौक।

एहि प्रकारसँ - हम अपने लोकनिसँ आग्रह करैत छी जे विभिन्न शर्त-हालतकेर सिरियल नंबर दैत लिखी, अपन विचार दी एवं उपलब्ध सभ सदस्यसँ विचार ली। सामाजिक चेतनाक जागृति हेतु नाटक मंचन करी, नुक्कड़ नाटक बहुत प्रभावकारी होयत। यदि अपने लोकनि एकर १० मिनट मात्र गाम-गाम, नगर-शहर, गली-कुची प्रदर्शन करब तऽ एकदम प्रभावकारी होयत।

अपनेक विचार पढबाक आश में - प्रवीण चौधरी ‘किशोर’

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शनिवार, 5 मार्च 2011

हम साँच बजैत छी....

हुजूर !
हम साँच साँच बजैत छी
साँच छोड़ी किछ नहि बजैत छी
हम दहेज़ नहि लैत छी .
राति दिन समाज सुधार में व्यस्त
रहैत छी
खाइत छी, पिवैत छी
मस्त रहैत छी
हुजूर ,हम दहेज़ नहि लैत छी.
की बाजलों
बड़का बौआ क व्याह में ?
नै नै जी नै
गलत बुझल अछ अहांके
स्थिति जानल नहि अहांके
टी वी देख बिन चैन नहि
फ्रिज क पानि बिन चैन नहि
से जज साहब !
अपन बेटी के ओ देलन्हि
हुजूर, हम ते नहि लेलहुं
हमरा सन गरीब ओते फ्रिज कत
टी वी कत
बस एकटा बेटा अछि
आला आफिसर
की कहलों गहना जेवर ?
ठीक बाजलों हुजूर
गहना से लादि देलक बाप ओकर
बाजल
अहाँ किछ नहि बाजु
रंग में भंग नहि घोरु
ई स्त्री-धन थीक
हमर बेटीक जीवन थीक
जखन सासुर में दुःख भेटत
जेवर जात स सुख भेटत
सोनाक खान में रहत
चैन क निन्न सूतत
हुजूर हमर की दोष अछि
की बेटी वाला निर्दोष अछि ?
की बाजलों ,छोटका बौआ ?
बेरोजगार ,निर्धन अछ
बस एकटा नौकरीक प्रश्न अछ ...
कोनो कोलेज में डोनेशन द
प्रोफेसरी दिआय दिय
आ की लाख लाख टका दय
सरकारी नौकरी लगाय दिय
बांचल अपन सुख साधन क सामान
ओ स्वयं ल क अओतीह
बेटी अहींक सुख पओतिह
हमर की
हमर ते किस्मत जेहन अछ ओहने
रही जायत.....................

लेखिका : डॉ. शेफालिका वर्मा

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हमहूँ मिथिला के बेटी थिकाऊ ?

भोरे   सूती उठी देखलो
आँखी सं अपन  नोर पोछैत ,
माए पुछलक कियाक कनैत  छी  ?
की देखलो  स्वप्न में कुनू दोस ?
बेटी आँखिक  नोर  पोछैत --की माए
हमहूँ  मिथिला  के  बेटी  थिकाऊ  ?

जतय  सीता जन्मली  मैट सं
ओहो  एकटा  नारी  भेली ,
जिनका रचायल वियाह स्वम्बर
हमहूँ  ओहिना एगो  नारी  भेलौ 
बेटी आँखिक  नोर  पोछैत --की माए
हमहूँ  मिथिला  के  बेटी  थिकाऊ  ?

आय  देखैत छीक घर - घर में
दहेजक  कारन  कतेक घरसे बहार ,
उमर  वियाहक  बितैत  अछि  हमरो --
की करू  हमहूँ  अपन  उपचार  ?
बेटी आँखिक  नोर  पोछैत --की माए
हमहूँ  मिथिला  के  बेटी  थिकाऊ  ?

धिया - पुत्ता में कनियाँ - पुतरा  संग
अपन  जिनगी  के केलो  बेकार ,
बाबु - काका  लगनक आश  में
सालक - साल लागोलैन जोगार ,
बेटी आँखिक  नोर पोछैत --की माए
हमहूँ  मिथिला  के  बेटी  थिकाऊ  ?

वियाह  देखलो संगी - सहेली क
नयन  जुरयल  मन  में  आस   भेटल ,
बट सावित्री    मधुश्रवणी पूजितो
सेहो आई सपनोहूँ से  छुटल
बेटी आँखिक  नोर पोछैत --की माए
हमहूँ  मिथिला  के  बेटी  थिकाऊ  ?

लेखिका -  
सोनी कुमारी (नॉएडा )
पट्टीटोल , भैरव  स्थान ,
झंझारपुर , मधुबनी , बिहार

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शुक्रवार, 4 मार्च 2011

दहेज़ मुक्त मिथिलाक उद्येश,....

दहेज़ मुक्त मिथिलाक उद्येश,.....

किछु दिन पहिने जितमोहन जी के एकता पोस्ट वोइस ऑफ़ मिथिला पैर आयल, जे आई प्रकार सँ छल:-

आय हम मैथिल बंधूक माध्यमसँ ई जानैक इच्छुक छी जे..

मिथिलाक नाम पर बहुत आन्दोलन चैल रहल अछि!

मुदा की मिथिला में दहेज़ प्रथाक लेल कुनू आन्दोलन चलत ?? यो मैथिल बंधूगन कहिया ई दहेजक महा जालसँ मिथिला मुक्त हेत... ??


अई विषय पर बहुत रास प्रतिक्रिया आयल, किछु उत्साहित किछु, किछु व्यंगात्मक, किछु प्रश्नवाचक,

किछु नवयुवक एहन छाला जे आपन जीवन में बहुत नीक मुकाम पर छैथ ऑओ अपन जीवन के निर्णय

अपने लेवा में पूर्ण सक्षम छैथ, जखन ओ सब आई विषय के समर्थन केला की मिथिला के दहेज़

मुक्त कायल जाय, तखन त छाती ३६ इंची भा गेल, मुदा अई विषय में एक त मुख्य गप जे सामने आयल ओ

इ की जे कियो बिना दहेज़ के विवाह करता से कनिया मनपसंद करता, बात त बब्बू बर सार्थक थीक, आ

होबाको सहे चाही, ताई पर हमरा लोकिन ई ब्लॉग के निर्माण केना छि, हमरा सब के आशा जे अई मुहीम में

अधिकाधिक नवयुवक आ हुनक माता-पिता जुरैथ आ अई दहेज़ रूपी कलंक के धोबा में सहयोग करी.


हम आपने लोकिन स ईहो आग्रह करब जे "दहेज़ मुक्त मिथिला" विषय पर अपन अपन विचार अवश्य

लिखी.

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गुरुवार, 3 मार्च 2011

Hi

Dahej Mukta Mithila aakhir kakara dis sa :-

1. Ladka dis sa ?

2. Ladki Dis sa ?

3. Ladki ke babu ji dis sa ?

ehi prasna ka jabab aichh?

Hum jakhan bina dahej ke bibah kayelahu ta lokaka jabab rahai je nikamma chhaik te ....

ee je apan samaj me bibah Parental Affair chhaik tahike pahine private affair lel la jaye parat takhan matra sambhab chhaik.

Choice marking ke mauka deba parat, takhan matra sambhab chhi.

Samaj me freedom laba parat.

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अविवाहित मैथिल युवक आ युवती सब सँ आग्रह..

अविवाहित मैथिल युवक आ युवती सब सँ आग्रह..., जे अपने लोकिन आई ब्लॉग स जूरी आ अई दहेज़ रूपी कलंक के समाप्त करावा में अपन सहयोग दी, आई ब्लॉग स जुर्वाक लेल, अपन ईमेल id उपरोक्त id पर भेजी.

छमा नव युवक आ नव युवती के मतलब ई नै की खली ईहे सब, समस्त मैथिल समाज कियक की गार्जियन सब के सेहो जरुरत छैन, ताई सुब गोते सा आग्रह,

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मंगलवार, 1 मार्च 2011

दहेज़??? We 'Maithil' don't support it!

"बड़ रे जतन सँ हम गौरी दाई के पोसलौं, पोसलौं नेह लागायल..सेहो शिव शंकर नेने जाय..
सोने सँ गौरी मोरे कोना का रहतीं.. बाबा घर छुटल जाए..!
एही बर लेल गौरी बड़ तप कैली बड़ ताप कैली, कारियों उमा के बिदाय..
आँगन बीच हेमंत ऋषि कानैत, सून भेल मैना के दुआर.. बाबा घर छुटल जाय..!
छाती पीट-पीटी मैना कानैत,  के मोरे उमा लेने जाय..
छोटे छिनी सौ हम पाली पोसी केलों, अपन करेजे लगाय..
बाबा घर छुटल जाय..बाबा घर छुटल जाय.."

I believe you readers can identify the lyrics of one of the Maithili Vivaah Songs we all love to play, sing and enjoy (its basically a महेशवानी). I also assume that it is not required to explain the soulful meaning and feelings this song (and obviously many other such songs) portray. Apart from other things, it definitely conveys the feelings of parents of a girl who is getting married and leaving for her husband's house. This songs along with many other Maithili songs has become part of the tradition we unmistakenly follow during marriages in our community, especially when we are the host, i.e. from the marrying girl's side.


Maithili marriages, originally, are known as a ceremonious event filled with traditional rituals in various forms, women singing different format of folk songs to express their gratitude to the lord, affection to the marrying couple, small jokes and laughing moments with new bride and bridegroom, sadness for bride leaving her parental home, and so on. Whenever we talk about the marriage system in Mithila, it automatically incorporates the mention of the dowry - one of the worst form of traditions deeply rooted in Indian culture.  Though it is oblivious that the system was started as bride's family's gesture of respect and welcome to those of bridegroom's family, usually in the form of small gifts, household stuffs, clothes, etc. Eventually it became a (almost mandatory) part of any marriage. And with the passage of time, as consumerism and bragism are becoming a not-so-unusual thing, the tendency of ours is to promote this ill-trend, directly or indirectly, intentionally or forcefully; either way we are becoming more and more involved in spreading this kuriti (कुरीति).


Now let me raise some real issues of concern in this regard. Almost all of us do know that giving and receiving dowry is a crime, social as well as legal and moral (very similar to bribe, isn't it?). We all talk aloud about avoiding this practice, uprooting this (evil)tradition, and blah.blah..blah..!! Ironically, most of us are, directly or indirectly, supporting it. Though I am so far just an onlooker of this traditional devilious act (because I am still unmarried! ha..ha..ha..ha.. ;-)), I have witnessed some very unwarranted sequences relating to dowry. The major cause of concern is that the (pseudo) traditional act of gifting has been changing its form and those who are against of this trend, are also supporting it and involved in it. You may be wondering what is this (pseudo) tradition in turning into? Yeah, think about it!

The bride's family granting heavy materialistic gifts to the bridegroom's family in the form of household stuff, jewellery, land, property, monetary benefits such as investments, deposits etc., not a thing of past, for sure. I mean they still practice gifting in these formats, definitely. But, what we are missing to notice is another form of this act that is grabbing poor Maithil brides' families. Those (bridegrooms' families) who are publicly not taking such materialistic gifts from brides' families, they are too encouraging the poor chaps to spend more and more on other activities in weddings such as hospitality etc.

The tradition of imitating the "big fat Indian wedding" is taking its roots in Maithil community. Bride's family is kind of forced to provide grand hospitality to the bridegroom's family and the Baraat, even if bride's family is not able to host them in such manner. They are forced to spend money on welcoming the bridegroom party in a huge and royal way. Though its not unexpected that bride's party does all this in their best possible way, but don't you think the 'best-possible-efforts' are not what the bridegroom's party wants from their counterparty. It is something (much much) more than that. They want something if not like the "Yash-Chopra's-films-kind-of-weddings", then at least a local version of those big fat Indian weddings. Such expectations may be including anything but not limited to great multi-cuisine dinner arrangements in western style, iconic decoration (which neighborhood people will be talking about for some time), band-baaja etc (the one most famous around is least what us expected!), and many other things copied either from films or from hi-society weddings, and so on! Doesn't this sound like another (and modified) version of dowry? Don't you think its going to hamper (and may be vanish) the rich Maithil Vivaah culture for our next generation, leave from the minds of outsiders who believe that we have a very nice tradition in Mithila? Shall we not give it a thought and discuss about it?


PS: I have written this post considering the current trends being followed in the Mithila Community, and I don't intend to hurt anyone's sentiments in any manner. Feedback and participation are always welcome. Thank you!!

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